लेखक: [[अटल बिहारी वाजपेयी]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=अटल बिहारी वाजपेयी]]}}{{KKCatKavita}}<poem>टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~सत्य का संघर्ष सत्ता सेन्याय लड़ता निरंकुशता सेअंधेरे ने दी चुनौती हैकिरण अंतिम अस्त होती है
टूट सकते हैं मगर हम झुक दीप निष्ठा का लिये निष्कंपवज्र टूटे या उठे भूकंपयह बराबर का नहीं सकते<br><br>है युद्धहम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्धहर तरह के शस्त्र से है सज्जऔर पशुबल हो उठा निर्लज्ज
सत्य किन्तु फिर भी जूझने का संघर्ष सत्ता से<br>प्रणन्याय लड़ता निरंकुशता अंगद ने बढ़ाया चरणप्राण-पण से<br>अंधेरे ने दी चुनौती है<br>करेंगे प्रतिकारकिरण अंतिम अस्त होती है<br><br>समर्पण की माँग अस्वीकार
दीप निष्ठा का लिये निष्कम्प<br>वज्र टूटे या उठे भूकम्प<br>यह बराबर का नहीं है युद्ध<br>हम निहत्थे, शत्रु है सन्नद्ध<br>हर तरह के शस्त्र से है सज्ज<br>और पशुबल हो उठा निर्लज्ज<br><br> किन्तु फिर भी जूझने का प्रण<br>अंगद ने बढ़ाया चरण<br>प्राण-पण से करेंगे प्रतिकार<br>समर्पण की माँग अस्वीकार<br><br> दाँव पर सब कुछ लगा है, रुक नहीं सकते<br>टूट सकते हैं मगर हम झुक नहीं सकते<br><br/poem>