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{{KKRachna
|रचनाकार=शार्दुला नोगजा
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इक मुड़ी जीन्स में, फंस गई सीप सी
आँधियों से भरे, एक कृत्रिम द्वीप सी
नाखुनों में घुसी, कुछ हठी रेत सी
पेड़ बौने लिये, बोन्साई खेत सी

टूटी इक गिटार सी, क्लिष्टव्यवहार सी
नाम भी ना रहे याद, भूले प्यार सी

फोटो बिन फ्रेम की, बस कुशल-क्षेम सी
बारिशों से स्थगित एक क्रिकेट गेम सी

हाथ से ढुल गई मय ना प्याले गिरी
शाम जो रात लौटी नहीं सिरफिरी

देने में जो सरल, सस्ते इक ज्ञान सी
भाव से हो रहित, हाय! उस गान सी

खोल खिड़की किरण जो ना घर आ सकी
धुन ज़हन में रही ना जुबाँ पा सकी

आदतों की बनी इक गहन रेख सी
बस जो होती बहु में ही, मीन-मेख सी

बी.एम.आई इंडैक्स सी, बिन कमाई टैक्स सी
जो कि पढ़ ना सके, उड़ गये फैक्स सी

हमको ऐसे मिली कि हँसी आ गई
फिर गले से लगाया तो शर्मा गई

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