गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
गाय / धर्मेन्द्र पारे
3 bytes removed
,
04:53, 2 अप्रैल 2009
गा-गा, लो-लो के साथ
जब जंगल जाती थी यह
इसकी बछिया के साथ मैं भी
रम्भाता
रँभाता
था
उसकी आँखों का भय और उदासी
मेरी आँखों में उतर आता था
डा० जगदीश व्योम
933
edits