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05:36, 3 अप्रैल 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आलोक श्रीवास्तव-2
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<poem>
कल्पना में एक समुद्र है
कल्पना में एक लड़की है
किनारे की लहरों से खेलती
पांवों से उछालती भीगी रेत
तट पर एक गाछ है
चांद है समूचा
दूर चप्पुओं की छ्प छ्प
मांझियों का गीत और
एक नाव है
लड़की की आंखों में
जिंदगी के दुख-सुख के
ढेरों सिलसिलों के बावजूद
इस समूचे चांद का अक्स है
और होठों पर
प्यार का एक बहुत पुराना
दूर वोल्गा-तट का गीत
कल्पना में
हवायें हैं-तेज खारी हवायें
और घिर आती अपनी लटें
उड़ उड़ पड़ता अपना दुपट्टा संभालती-सहेजती
यह लड़की है-
मेरी दोस्त ।
</poem>