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18:03, 6 अप्रैल 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=के० सच्चिदानंदन
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<Poem>
हर प्रेमी अभिषप्त है
भूल जाने को, कम से कम कुछ देर के लिए
अपनी स्त्री को : जैसे विस्मरण की नदी
अपने ही प्यार पर बाढ़ ला दे
हर प्रेमिका अभिशप्त है
तब तक भुला दिए जाने को जब तक उसका रहस्य
स्मृति के जाल में फँस नहीं जाता
प्रत्येक शिशु अभिशप्त है
पितृहीन बड़ा होने को
शेर के मुँह में अपना हाथ डालकर
मूल मलयालम से स्वयं कवि द्वारा अंग्रेजी में अनूदित. अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद: व्योमेश शुक्ल