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18:12, 6 अप्रैल 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=के० सच्चिदानंदन
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<Poem>
वे आए
सुनिश्चित चाल और लाल झंडों के साथ
हमारे अपने अपने कॉमरेड
उन्होंने हमें दी ज़मीन, पानी, बादल, आत्मवत्ता
वे फिर आए
काली बंदूकों और डगमगाते क़दमों के साथ
हमारे अपने शत्रु
उन्होंने छीन ली हमसे हमारी
ज़मीन, पानी, बादल, आत्मवत्ता
झंडे यों भी लाल कर दिए जाते हैं
हँसिया स्वस्तिक में बदल जाती है
हथौड़ा भी वहां करने लग सकता है खूनी पंजों को
सितारा दूसरे झंडों पर भी सवार हो सकता है
लेनिन-लेनिन का उद्घोष
सलीम-सलीम के जयकारे में परिणत हो सकता है
उक्रेन, प्राग, ब्रातिसलेवियारूमानिया
रूमानिया, कम्पूचिया, अल्बानिया
उन बड़ी मूंछों की बाढ़
अभी तक थमी नहीं है
'''मूल मलयालम से स्वयं कवि द्वारा अंग्रेजी में अनूदित. अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद: व्योमेश शुक्ल