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सर फ़रोशी की तमन्ना / राम प्रसाद बिस्मिल
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19:51, 22 सितम्बर 2006
हम तो घर से निकले ही थे बांध कर सर पे क़फ़न<br>
चाहतें लीं भर
जान हथेली पर
लिए लो
भर
बढ
चले हैं ये क़दम<br>
ज़िंदगी तो अपनी मेहमाँ मौत की महफ़िल में है।<br><br>
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