<div class='box' style="background-color:#DD5511eee;width:100%; alignpadding:center10px"><div class='boxtop'><div></div></div><div class='boxheader' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'>''' सप्ताह की कविता'''</div><div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent' style='background-color:#F5CCBBtransparent;borderwidth:1px solid #DD551195%;'><!----BOX CONTENT STARTS------> '''शीर्षकheight: ''' आओ मंदिर मस्जिद खेलें<br> 450px; '''रचनाकार:''' [[रामकुमार कृषक]] <pre style="overflow:auto;heightborder:21em0px inset #aaa;padding:10px">आओ मंदिर मस्जिद खेलें खूब पदायें मस्जिद को कल्पित जन्मभूमि को जीतें और हरायें मस्जिद को
सिया<div style="font-राममय सब जग जानी सारे जग में राम रमा size:120%; color:#a00000; text-align: center;">फिर भी यह मस्जिद, क्यों मस्जिद चलो हटायें मस्जिद को खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
तोड़ें दिल के हर मंदिर को पत्थर का मंदिर गढ़ लें <div style="text-align: center;">मानवता पैरों की जूती यह जतलायें मस्जिद को रचनाकार: [[त्रिलोचन]]</div>
बाबर बर्बर होगा लेकिन हम भी उससे घाट नहीं <div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">वह खाता था कसम खुदा की हम खा जायें मस्जिद को खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वारअपरिचित पास आओ
मध्यकाल आँखों में सशंक जिज्ञासामिक्ति कहाँ, है अभी कुहासाजहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैंस्तम्भ शेष भय की खूँ रेज़ी से वर्तमान को रंगें चलो परिभाषाअपनीहिलो-अपनी कुर्सी का भवितव्य बनायें मस्जिद को मिलो फिर एक डाल केखिलो फूल-से, मत अलगाओ
राम-नाम सबमें अपनेपन की लूट मची है मर्यादा को क्यों छोड़ें मायालूटपाट करते अब सरहद पार करायें मस्जिद को देश हमारा है तोंदों तक नस्लवाद तक आज़ादी इसी मुख्य धारा अपने पन में आने को धमकायें मस्जिद को धर्म बहुत कमजोर हुआ है लकवे का डर सता रहा अपने डर से डरे हुए हम चलो डरायें मस्जिद को गंगाजली उठायें झूठी सरयू को गंदा कर दें संग राम को फिर ले डूबें और डूबायें मस्जिद को जीवन आया </prediv><!----BOX CONTENT ENDS------></div><div class='boxbottom'><div></div></div></div>