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किशोर / व्योमेश शुक्ल

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दुनिया में लौटना होता है किशोर को भी
 
विपत्ति है थियेटर घर फूँककर तमाशा देखना पड़ता है
 
दर्शक आते हैं या नहीं आते
 
नहीं आते हैं या नहीं आते
 
भारतेंदु के मंच पर आग लग गई है लोग बदहवास होकर अंग्रेजी में भाग रहे हैं
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