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स्वर / ज़्देन्येक वागनेर

804 bytes added, 20:40, 11 अप्रैल 2009
नयी कविता
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{{KKRachna
|रचनाकार=ज़्देन्येक वागनेर
|संग्रह=
}}
<Poem>
थके हुए स्वर
समीर में नाचते हैं।
अभी खेतों पर
सूर्यमुखी सोनते हैं।
सफ़ेद चाँद आकाश से
तितलियों को देखता है
और कोई आज तुमसे
कहीं प्यार करता है।


और अब यही कविता चेक भाषा में

Samohlásky
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Znavené samohlásky
tančí si v lehkém vánku.
Na louce sedmikrásky
skládají hlavy k spánku.
Z oblohy na bělásky
bledý se měsíc dívá
a tvoje dlouhé vlásky
dnes kdosi jiný líbá.
</poem>
17
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