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गुल तुझे देख के गुलशन में कहे, उम्र-दराज़!
शाख़ के बदले वही दस्ते-दुआ पैदा हो।
न सरे-ज़ुल्फ़ मिला, बल-बे दराज़ी तेरी
रिश्ताएँ-तूले अमल का भी सिरा पैदा हो।
अभी ख़ुर्शीद जो छुप जाए, तो ज़र्रात कहाँ
तू ही पिनहाँ हो तो फिर कौन भला पैदा हो।
क्या मुबारक हो मेरा दश्ते-जुनूँ ऎ ’नासिख़’
बेज़ा-ए-बूम भी टूटे तो हुमा पैदा हो।
'''शब्दार्थ =
आहे रसा = प्रभावपूर्ण आह
सदमा = आघात
कुश्ता-ए-तेगे-जुदाई = वियोग की तलवार का मारा हुआ
अज्ब = अंग
मिस्ले-अक्सीर = अचूक दवा की तरह
बा आवाज़े-बलंद = बुलन्द आवाज़ में दिल
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