Changes

कवि: [[माखनलाल चतुर्वेदी]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी]] ~*~*~*~*~*~*~*~ |संग्रह= }}<poem>
गाली में गरिमा घोल-घोल
 
क्यों बढ़ा लिया यह नेह-तोल
 
 
कितने मीठे, कितने प्यारे
 
अर्पण के अनजाने विरोध
 
कैसे नारद के भक्ति-सूत्र
 
आ गये कुंज-वन शोध-शोध!
 
हिल उठे झूलने भरे झोल
 
गाली में गरिमा घोल-घोल।
 
 
जब बेढंगे हो उठे द्वार
 
जब बे काबू हो उठा ज्वार
 
इसने जिस दिन घनश्याम कहा
 
वह बोल उठा परवर-दिगार।
 
मणियों का भी क्या बने मोल।
 
गाली में गरिमा घोल-घोल।
 
 
ये बोले इनका मृदुल हास्य
 
वे कहें कि उनके मृदुल बोल
 
भूगोल चुटकियाँ देता है
 
वह नाच-नाच उट्टा खगोल।
 
कुछ तो अपने फरफन्द खोल
 
गाली में गरिमा घोल-घोल।।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,461
edits