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यह मोजज़ा<ref>प्रतिबन्ध</ref> भी मुहब्बत कभी दिखाए मुझे
कि संग तुझ पे गिरे और ज़ख़्म आए मुझे
बदन मेरा ही सही दोपहर न भाए मुझे
ब-रंग-ए-ऊद<ref>अगरबती की तरह</ref> मिलेगी उसे मेरी ख़ुश्बू
वो जब भी चाहे बड़े शौक़ से जलाए मुझे
मैं घर से तेरी तमन्ना पहन के जब निकलूँ
बरह्ना <ref>नंगा,ख़ाली</ref>शहर में कोई नज़र न आए मुझे
वही तो सब से ज़्यादा है नुक्ताचीं मेरा
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