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03:22, 15 अप्रैल 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=विनोद कुमार शुक्ल
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<Poem>
जब मैं भीम बैठका देखने गया
तब हम लोग साथ थे।
हमारे सामने एक लाश थी
एक खुली गाड़ी में.
हम लोग उससे आगे नहीं जा पा रहे थे.
जब मैं उससे आगे नहीं जा पा रहे थे.
तब हम सब आगे निकल गये.
जब मैं भीम बैठका पहुँचा
हम सब भीम बैठका पहुँच गये.
चट्टानों में आदिमानव के फुरसत का था समय
हिरण जैसा, घोड़े बंदरों, सामूहिक नृत्य जैसा समय.
ऊपर एक चट्टान की खोह से कबूतरों का झुंड
फड़फड़ाकर निकला
यह हमारा समय था पत्थरों के घोंसलों में -
उनके साथ
जब मैं लौटा
तब हम लोग साथ थे.
लौटते हुए मैंने कबूतरों को
चट्टानों के घोंसलों में लौटते देखा.
</poem>