जिससे जब तक मिले दिल ही से मिले दिल जो बदला तो फसाना बदला<br>
ऱसम-ए-रस्में दुनिया की निभाने के लिए हमसे रिश्तों की तिज़ारत ना हुई<br><br>
दूर से था वो कई चेहरों में पास से कोई भी वैसा ना लगा<br>
बेवफ़ाई भी उसी का था चलन फिर किसीसे ही श़िकायत भी शिकायत ना हुई<br><br>
व़क्त वक्त रूठा रहा बच्चे की तरह राह में कोई खिलौना ना मिला<br>
दोस्ती भी तो निभाई ना गई दुश्मनी में भी अदावत ना हुई<br><br>