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कवि: [[माखनलाल चतुर्वेदी]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी]] ~*~*~*~*~*~*~*~ |संग्रह= }}<poem>
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!
 
प्रलय-प्रणय की मधु-सीमा में
 
जी का विश्व वसा दो मालिक!
 
 
रागें हैं लाचारी मेरी,
 
तानें बान तुम्हारी मेरी,
 
इन रंगीन मृतक खंडों पर,
 
अमृत-रस ढुलका दो मालिक!
 
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!
 
जब मेरा अलगोजा बोले,
 
बल का मणिधर, स्र्ख रख डोले,
 
खोले श्याम-कुण्डली विष को
 
पथ-भूलना सिखा दो मालिक!
 
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!
 
प्रहर-प्रहर की लहर-लहर पर
 
तुम लालिमा जगा दो मालिक!
 
मधुर-मधुर कुछ गा दो मालिक!
</poem>
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