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कवि: [[माखनलाल चतुर्वेदी]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी]] ~*~*~*~*~*~*~*~ |संग्रह= }}<poem>
वेणु लो, गूँजे धरा मेरे सलोने श्याम
 
एशिया की गोपियों ने वेणि बाँधी है
 
गूँजते हों गान,गिरते हों अमित अभिमान
 
तारकों-सी नृत्य ने बारात साधी है।
 
 
युग-धरा से दृग-धरा तक खींच मधुर लकीर
 
उठ पड़े हैं चरण कितने लाड़ले छुम से
 
आज अणु ने प्रलय की टीका
 
विश्व-शिशु करता रहा प्रण-वाद जब तुमसे।
 
 
शील से लग पंचशील बना, लगी फिर होड़
 
विकल आगी पर तृणों के मोल की बकवास
 
भट्टियाँ हैं, हम शान्ति-रक्षक हैं
 
क्यों विकास करे भड़कता विश्व सत्यानाश !
 
 
वेद की-सी वाणियों-सी निम्नगा की दौड़
 
ऋषि-गुहा-संकल्प से ऊँचे उठे नगराज
 
घूमती धरती, सिसकती प्राण वाली साँस
 
श्याम तुमको खोजती, बोली विवश वह आज।
 
 
आज बल से, मधुर बलि की, यों छिड़े फिर होड़
 
जगत में उभरें अमित निर्माण, फिर निर्माण,
 
श्वास के पंखे झलें, ले एक और हिलोर
 
जहाँ व्रजवासिनि पुकारें वहाँ भेज त्राण।
 
 
हैं तुम्हारे साथ वंशी के उठे से वंश
 
और अपमानित उठा रक्खे अधर पर गान!
 
रस बरस उट्ठा रसा से कसमसाहट ले
 
खुल गये हैं कान आशातीत आहट ले।
 
 
यह उठी आराधिका सी राधिका रसराज
 
विकल यमुना के स्वरों फिर बीन बोली आज!
 
क्षुधित फण पर क्रुधित फणि की नृत्य कर गणतंत्र
 
सर्जना के तन्त्र ले, मधु-अर्चना के मन्त्र!
 
 
आज कोई विश्व-दैत्य तुम्हें चुनौती दे
 
औ महाभारत न हो पाये सखे! सुकुमार
 
बलवती अक्षौहिणियाँ विश्व-नाश करें
 
`शस्त्र मैं लूँगा नहीं' की कर सको हुँकार।
 
 
किन्तु प्रण की, प्रण की बाजी जगे उस दिन
 
हो कि इस भू-भाग पर ही जिस किसी का वार!
 
तब हथेली गर्विताएँ, कोटि शिर-गण देख
 
विजय पर हँस कर मनावें लाड़ला त्यौहार।
 
 
आज प्राण वसुन्धरा पर यों बिके से हैं
 
मरण के संकेत जीवन पर लिखे से हैं
 
मृत्यु की कीमत चुकायेंगे सखे ! मय सूद
 
दृष्टि पर हिम शैल हो, हर साँस में बारूद।
 
 
जग उठे नेपाल प्रहरी, हँस उठे गन्धार
 
उदधि-ज्वारों उमड़ आय वसुन्धरा में प्यार
 
अभय वैरागिन प्रतीक्षा अमर बोले बोल
 
एशिया की गोप-बाला उठें वेणी खोल!
 
नष्ट होने दो सखे! संहार के सौ काम
 
वेणु लो, गूँजे धरा, मेरे सलोने श्याम।।
<poem>
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