<poem>
मंदस्मित करुणा रसवर्षी वह अद्भुत बादल नाम रूप पद बोध विसर्जित कर सच्चामय बन मधुकर मृदु करतल सहला सहला सिर हरता प्राण व्यथा मनोराज्य में ही रम सुखमय झर झर झर झरता निर्झर मनोहारिणी चितवन से सर्वस्व तुम्हारा हर मनहर सच्चे प्रियतम के कर में रख पंकिल प्राणों की वीणाटेर रहा है उरविहारिणी अमन्दगुंजरिता मुरली तेरा मुरलीधर।।11।।मुरलीधर।।6।।
विविध भाव सुमनों की अपनी सजने यत्किंचित जो भी तेरा है उसका ही कर दे क्यारी मधुकर कोना कोना सराबोर कर बहे वहाँ सच्चा करता रहे तुम्हें नित सिंचित प्रभुपद कंज विमल निर्झर वह तेरे सारे सुमनों का रसग्राही आनन्दपथी मलिन मोह आवरण भग्न कर करले प्रेम भरित अंतर टेर रहा सर्वांतरात्मिका हे भुवनमोहिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।12।।मुरलीधर।।7।।
मॅंडराते आनन पर तेरे उसके कंज नयन मनोराज्य में देख पुश्पिता उसकी तरुलतिका मधुकर तृषित चकोरी सदृश देख तू उसका मुख मयंक उसकी मनहर भावभरी भ्रमरी तितली सरणी निर्झर युगल करतलों में रख आनन कर निहाल तुमको अविकल स्नेह सुरभि बांटता सलोना मनभावन बंशीवाला टेर रहा है मन्मथमथिनी अमृतसंश्रया मुरली तेरा मुरलीधर।।13।।तेरा मुरलीधर।।8।।
सब प्रकार मेरे मेरे हो गदगद उर कह कह तुम्हें पुकार मधुर वाणी में बार बार मोहन मधुकर युग युग से प्यासे प्राणों कर्णपुटों में देता ढाल सुधा रहा है वह आनन्दामृत निर्झर भरिता कहां गया संबोधनकर्ता विकल प्राण कर देता रिक्ता को बिना दिये तुमको अवसर अन्वेषणटेर रहा है नादविग्रहा आत्मविग्रहा मुरली तेरा मुरलीधर।।14।।मुरलीधर।।9।।
माँग माँग फैला कर अंचल बिलख विधाता से मधुकर लहरा दे कुरुप जीवन में वह अभिनव सुषमा निर्झर उसकी लीला वही जानता ढरकाता रस रंग रंग की गगरी टेर रहा है प्रेमभिक्षुणि मुरली तेरा मुरलीधर।।15।। गहन तिमिर राग रागिनी छेड बांसुरी में दिशादर्शिका हो ज्यों दीपशिखा मधुकर मरु अवनी की प्राण पिपासा हर लें ज्यों नीरद निर्झर तथा मृतक काया बूंद बूंद में पंकिल भर नव श्वाँसों उतर प्रीति का स्पंदनटेर रहा है नित्य नूतना मुरली तेरा मुरलीधर।।16।। लघु जलकणिका को बाहों के पलने में ले ले मधुकर हलराता दुलराता रहता ज्यों अविराम सिंधु निर्झर बिन्दु बिन्दु में प्रतिपल स्पंदित तथा तुम्हारा रत्नाकर टेर रहा है स्वजनादरिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।17।। चिन्तित सोच विगत वासर क्यों व्यथित सोच भावी मधुकर प्रवहित निशि वासर अनुप्राणित नित्य नवल जीवन निर्झर पल पल जीवन रसास्वाद का तुम्हें भेंज कर आमंत्रण टेर रहा है प्रियागुणाढ्या मुरली तेरा मुरलीधर।।18।। गत स्मृतियों को जोड जोड क्यों दौड रहा मोहित मधुकर सुधा नीरनिधि छोड बावरे मरता चाट गरल निर्झर फंस किस आशा अभिलाषा में व्यर्थ काटता दिन पंकिल टेर रहा है मधुरमाधवी मुरली तेरा मुरलीधर।।19।। गूँथ प्राणमाला मतवाला आनेवाला है मधुकर अति समीप आसीन तुम्हारे ही तो तेरा बन गया रस निर्झरबड़भागिनी तुम्हें कर देगा ललित अंक ले वनमालीबहुत चाहता तुम्हारा वह प्यारा सच्चा प्रियतम टेर रहा है मनोहारिणी सरसारसवंती मुरली तेरा मुरलीधर।।20।।मुरलीधर।।10।।
</poem>