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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा |संग्रह= }} <Poem> खिला गुलमुहर जब कभी द...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=
}}
<Poem>
खिला गुलमुहर जब कभी द्वार मेरे,
याद तेरी अचानक मुझे आ गई .
किसी वृक्ष पर जो दिखा नाम तेरा,
ज़िंदगी ने कहा ज़िंदगी पा गई ..
आईने ने कभी आँख मारी अगर,
आँख छवि में तुम्हारी ही भरमा गई.
चीर कर दुपहरी छांह ऐसे घिरी,
चूनरी ज्यों तुम्हारी लहर छा गई..
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=
}}
<Poem>
खिला गुलमुहर जब कभी द्वार मेरे,
याद तेरी अचानक मुझे आ गई .
किसी वृक्ष पर जो दिखा नाम तेरा,
ज़िंदगी ने कहा ज़िंदगी पा गई ..
आईने ने कभी आँख मारी अगर,
आँख छवि में तुम्हारी ही भरमा गई.
चीर कर दुपहरी छांह ऐसे घिरी,
चूनरी ज्यों तुम्हारी लहर छा गई..
</poem>