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औरतें / ऋषभ देव शर्मा

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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=ताकि सनद रहे/ ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
अवधूतो! सुनो,
साधुओं! सुनो,
 
कबीर ने आज फिर
हाथी मार बगल में देन्हें
ऊँट लिए लटकाय!
 
नहीं समझे?
कुरते-पाजामे-धोती-टोपी वाले मर्द!
वे उन्हें उनके हक़
दिलवाकर ही रहेंगे .रहेंगे।
 राजनीति में सब कुछ सम्भव है.है।
यहाँ घोड़े और घास में
यारी हो सकती है .है।कुर्सी कुछ भी करा सकती है.है।
-कुर्सी महा ठगिनी हम जानी!
 
कुर्सी का ही तो प्रताप है
कि शेर हिरनियों की
हिफाजत कर रहे हैं
(मर्द औरतों की वकालत कर रहे हैं).
सुनो, सुनो,
सिर्फ़ औरतें;
मर्दों की खातिर औरतें!
 
रूप कुंवर, शाह बानो,
लता, अमीना, भंवरी बाई,
माया त्यागी, फूलन...........,
श्रीमती अ,
मैडम ब,
या बेगम स..........
नाम कुछ भी हो,
औरतें सिर्फ़ औरतें हैं
मर्दों की दुनिया में.
औरतें.....चुडै़लें......!चुडै़लें........औरतें......! 
सुनो, सुनो,
धरती कूट रहे हैं,
आसमान फाड़ रहे हैं.
 
मानते हैं -
धर्म और मजहब में !
 और वे चीख चीख़़ रहे हैं: 
औरतें एक नहीं हैं!
कैसे हो सकती हैं औरतें एक,
हमसे पूछे बिना?
 
सुनो, सुनो,
नाच रही हैं चुडै़लें
हँसती हुईं, रोती हुईं , गाती हुईं :
 
दुनिया भर की औरतों , एक हो !
खोने को -
सिवा मर्दों की गुलामी के !!
 
</poem>
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