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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=ताकि सनद रहे / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
अम्मृत के आश्वासन देना नादानी है
सूखे होठों की दवा घूँट भर पानी है

कितनी कुटियों में नहीं हुई दीया-बाती
क्यों भला हवेली बिजली की दीवानी है?

रग्घू की माँ तो चिथडों से गुदडी सीती
शोषण की साड़ी में पर दिल्ली रानी है

दाएँ-बाएँ बोल कवायद करने वालो !
भूखे पेटों का अनुशासन बेमानी है

धरती की चीखों से पीड़ा से आज तलक
अंधी-बहरी कुर्सी बिल्कुल अनजानी है
</Poem>