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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तेवरी / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
लो दिवाली की बधाई , मित्रवर !
लो दिवाली की मिठाई ,मित्रवर !

एक दीपक के लिए मुहताज घर
आपने बस्ती जलाई , मित्रवर !

जल चुका रावण, न बुझती है चिता
आग यह कैसी लगाई , मित्रवर !

चौखटों की छाँह तक बीमार है
क्यों हवा ऐसी चलाई , मित्रवर !

अब रहो तैयार लुटने के लिए ,
रोशनी तुमने चुराई , मित्रवर !

हर अँधेरी जेल तोडी जायगी ,
यह कसम युग ने उठाई , मित्रवर !
</Poem>