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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
बौनी जनता , ऊंची कुर्सी , प्रतिनिधियों का कहना है
न्यायों को कठमुल्लाओं का बंधक बन कर रहना है

वोटों की दूकान न उजड़े , चाहे देश भले उजड़े
अंधी आंधी में चुनाव की , हर संसद को बहना है

टोपी वाले बाँट रहे हैं, मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारे
इस बँटवारे को चुप रहकर, कितने दिन तक सहना है

देव तक्षकों के रक्षक हैं ,दूध और विष की यारी
असम, आंध्र , कश्मीर सब कहीं,यही रोज़ का दहना है

हम प्रकाश के प्रहरी निकले ,कलमें तेज़ दुधारी ले
सूरज इतने साल गह चुका, राहु केतु को गहना है
</Poem>