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18:23, 26 अप्रैल 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
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<Poem>
उगी रोटियाँ देख बाली गेहूँ की
पकी खड़ी हर खेत बाली गेहूँ की
सफ़र किया बाज़ारों का खलिहान ने
ख़ाली-ख़ाली पेट बाली गेहूँ की
गलियारों में होली की तैयारियाँ
उपजे बीज अनेक बाली गेहूँ की
मिले न अपना ख़ून उनकी मदिरा में
करे बग़ावत एक बाली गेहूँ की
टिड्डी-दल की ख़ैर नहीं इस बार तो
ताने हुए गुलेल बाली गेहूँ की
</Poem>