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18:31, 26 अप्रैल 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
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<Poem>
माला-टोपी ने मिल करके कुछ ऐसा उपचार किया
भारत-पुत्रों ने भारत के पुत्रों का संहार किया
ऊंची बुर्जी के तलघर में ज्वाला का भण्डार किया
मेरे अमरित के सरवर में कटु विष का संचार किया
इसी नवम्बर में बस्ती में बैमौसम के बर्फ गिरी
पगली एक हवा ने सबको घर से बेघरबार किया
धूप चढ़े पर श्वेत कबूतर जभी घोंसले से निकला
बलि पूजा के काले पंजों ने गर्दन पर वार किया
परखनली में नेता भरकर कब से यह जनता बैठी
कुर्सी पर पधरे लोगों ने बहुत गुप्त व्यापार किया
विश्वासों के हत्यारों को जीने का अधिकार नहीं
यही फकीरा ने सोचा है जितनी बार विचार किया
लोकद्रोह के सब षड्यंत्रों के हम शीश तराशेंगे
लोकतंत्र की सान चढा़कर शब्द-शब्द हथियार किया
</Poem>