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18:39, 26 अप्रैल 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
माना कि भारतवर्ष यह, संयम की खान है
झंडे के बीच चक्र का, लेकिन निशान है
अब क्यों न फूल हाथ में तलवार थाम लें
जब तीर बन हवा चली, झोंका कमान है
पागल हुआ हाथी, इसे गोली से मार दें
यह राय बस मेरी नहीं, सबका बयान है
संसद बचा सकी नहीं, कुर्सी ने खा लिया
कितना निरीह देश का, यह संविधान है
उबला समुद्र शांति का, थामे न थमेगा
इसको न और आँच दो, किस ओर ध्यान है</Poem>