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18:42, 26 अप्रैल 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
लोकशाही के सभी सामान लाएँगे
पाँच वर्षों पूर्व के महमान आएँगे
बर्फ के गोले बनाकर खेलते बच्चे
धूप चोरों को अभी पहचान जाएँगे
भीड़ भेड़ों की सजग है, कुछ नया होगा
खाल ओढे भेड़िए नुकसान पाएँगे
रोष की आंधी चली तो हिल उठी दिल्ली
होशियारी के शिखर नादान ढाएँगे
उग रहा सूरज अँधेरा चीरकर फिर से
रोशनी का अब सभी जयगान गाएँगे</Poem>