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18:44, 26 अप्रैल 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
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<Poem>
पाक सीमा पर बसे इक, गाँव में यह हाल देखा
षोडशी मणि को निगलता, साठवर्षी ब्याल देखा
जब कभी झाँका किसी के, सोच में, ऐसा लगा बस
सड़ रहीं मुर्दा मछलियाँ, एक गदला ताल देखा
भीड़ में बिजली गिराते, अग्निमय भाषण सुने औं’
धर्म के नारे उठाकर, कौन चलता चाल देखा
देश की जब बात आई, एक मोमिन ने बताया
“मैं पढ़ा परदेस में हूँ’, साजिशों का जाल देखा
तस्करी की योजनाएँ, अस्त्रशस्त्रों का जख़ीरा
ये मिले जब रोशनी में, खोल करके खाल देखा
जो फ़सल में ज़हर भरती, उस हवा को चीर डालो
गीध खेती नोंचते हैं, द़ृश्य यह विकराल देखा</Poem>