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18:46, 26 अप्रैल 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
कुर्ते की जेबें खाली हैं , औ’ फटा हुआ है पाजामा
इनको न भिखारी समझो तुम ,ये करने निकले हंगामा
धक्के-मुक्के, गाली-गुस्सा ,खा-पीकर इतने बड़े हुए
फुसला न सकोगे इनको तुम, दिखला करके चंदामामा
दिल्ली वाले बाजीगर जी! अब जाग उठा है शेषनाग
भागो, छोड़ो यह बीन-शीन, यह टोपी-बालों का ड्रामा </Poem>