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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
मानचित्र को चीरती, मजहब की शमशीर
या तो इसको तोड़ दो, या टूटे तस्वीर
एल.ओ.सी के दो तरफ़, एक कुटुम दो गाँव
छाती का छाला हुआ, वह सुंदर कश्मीर
आदम के कंधे झुके, कंधों पर भगवान्
उसके ऊपर तख्त है, उलटे कौन फकीर
सेवा का व्रत धार कर, धौले चोगे ओढ़
छेद रहे सीमा, सुनो! सम्प्रदाय के तीर
मुहर-महोत्सव हो रहा, पाँच वर्ष के बाद
जाति पूछकर बंट रही, लोकतंत्र की खीर
घर फूँका तब बन सकी, यारो! एक मशाल
हाथ लिए जिसको खड़ा बीच बज़ार कबीर </Poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
मानचित्र को चीरती, मजहब की शमशीर
या तो इसको तोड़ दो, या टूटे तस्वीर
एल.ओ.सी के दो तरफ़, एक कुटुम दो गाँव
छाती का छाला हुआ, वह सुंदर कश्मीर
आदम के कंधे झुके, कंधों पर भगवान्
उसके ऊपर तख्त है, उलटे कौन फकीर
सेवा का व्रत धार कर, धौले चोगे ओढ़
छेद रहे सीमा, सुनो! सम्प्रदाय के तीर
मुहर-महोत्सव हो रहा, पाँच वर्ष के बाद
जाति पूछकर बंट रही, लोकतंत्र की खीर
घर फूँका तब बन सकी, यारो! एक मशाल
हाथ लिए जिसको खड़ा बीच बज़ार कबीर </Poem>