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|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
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<Poem>
घर के कोने में बैठे हो लगा पालथी, भैया जी
खुले चौक पर आज आपका एक बयान ज़रूरी है

झंडों-मीनारों-घंटों ने बस्ती पर हल्ला बोला
चिडियाँ चीखें, कलियाँ चटखें शर संधान ज़रूरी है

मैं सूरज को खोज रहा था संविधान की पुस्तक में
मेरा बेटा बोला — पापा. रोशनदान ज़रूरी है

जिनके भीतर तंग सुरंगें, अंधकूप तक जाती हैं
उन दरवाजों पर खतरे का, बड़ा निशान ज़रूरी हैं.</Poem>