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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
ठीक है - जो बिक गया, खामोश है
क्यों मगर सारी सभा खामोश है

जल रही चुपचाप केसर की कली
चीड़वन क्योंकर भला खामोश है

गरदनों पर उँगलियाँ विष-गैस की
संगमरमर का किला खामोश है

यह बड़े तूफान की चेतावनी
जो उमस में हर दिशा खामोश है

आ गई हाँका लगाने की घड़ी
क्यों अभी तक तू खड़ा खामोश है</Poem>