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18:58, 26 अप्रैल 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
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<Poem>
आग के व्यापारियों ने बाग को झुलसा दिया
और वे दुरबीन से, उठती लपट देखा किए
साधुवेशी तस्करों ने शहर सारा ठग लिया
और वे लवलीन - से सारा कपट देखा किए
साजिशों की सनसनाहट छप गई अखबार में
और वे गमगीन - से खुफिया रपट देखा किए
द्रौपदी दु:शासनों को नोंचती ही रह गई
और वे बलहीन - से छीना-झपट देखा किए
लोग उनसे श्वेतपत्रों के लिए कहते रहे
और वे अतिदीन - से बस श्यामपट देखा किए।
</Poem>