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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तेवरी / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>सबका झंडा एक तिरंगा होने दो
घायल नक्शे को अब चंगा होने दो

यह राजरोग कुर्सी ने फैलाया है
अब नहीं कहीं भी यूँ दंगा होने दो

बनो सपेरे, नाग इशारे पर नाचें
मत जयचंदों को दोरंगा होने दो

मस्जिदें तुम्हारे चरणों पर घूमेंगी
मुल्ला की फ़ितरत को नंगा होने दो

क्या कहा भगीरथ ? शंकर हो जाओगे
तुम ज़रा पसीने को गंगा होने दो </poem>