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19:32, 1 मई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तेवरी / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>हादसे अब घटने चाहिएँ
यार ! बादल छँटने चाहिएँ
कुर्सी मरखनी हो गई है
इसके सींग कटने चाहिएँ
पढ़ो ‘रा’ से रोटी, रथ नहीं
श्रम के गीत रटने चाहिएँ
भरे गोदाम से अनाज के
पहरे सभी हटने चाहिएँ
‘जनगण की छातियों में दफ़न
ज्वालामुखी फटने चाहिएँ </poem>