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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तेवरी / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>हो गए हैं आप तो ऋतुराज होली में
वे तरसते रंग को भी आज होली में

काँख में खाते दबाए आ गया मौसम
खून से वे भर रहे हैं ब्याज होली में

चौक में है आज जलसा भूल मत जाना
भूख की आँतें बनेंगी साज होली में

हर गली उद्दण्डता पर उतर आई है
खुल न जाए राजपथ का राज़ होली में

कब कई प्रह्लाद लेंगे आग हाथों पर ?
कब जलेगी होलिका की लाज होली में ? </poem>