कवि: [[{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=माखनलाल चतुर्वेदी]]}}[[Category:बाल-कविताएँ]][[Category:शिशुगीत]]<poem>ले लो दो आने के चारलड्डू राज गिरे के यार[[Category:माखनलाल चतुर्वेदी]]यह हैं धरती जैसे गोलढुलक पड़ेंगे गोल मटोलइनके मीठे स्वादों में हीबन आता है इनका मोलदामों का मत करो विचारले लो दो आने के चार।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~लोगे खूब मज़ा लायेंगेना लोगे तो ललचायेंगेमुन्नी, लल्लू, अरुण, अशोकहँसी खुशी से सब खायेंगेइनमें बाबू जी का प्यारले लो दो आने के चार।
ले लो दो आने के चार<br>लड्डू राज गिरे के यार<br>यह हैं धरती जैसे गोल<br>ढुलक पड़ेंगे गोल मटोल<br>इनके मीठे स्वादों में ही<br>बन आता है इनका मोल<br>दामों का मत करो विचार<br>ले लो दो आने के चार।<br>लोगे खूब मज़ा लायेंगे<br>ना लोगे तो ललचायेंगे<br>मुन्नी, लल्लू, अरुण, अशोक<br>हँसी खुशी से सब खायेंगे<br>इनमें बाबू जी का प्यार<br>ले लो दो आने के चार।<br>कुछ देरी से आया हूँ मैं<br>माल बना कर लाया हूँ मैं<br>मौसी की नज़रें इन पर हैं<br>फूफा पूँछ पूछ रहे क्या दर है<br>जल्द खरीदो लुटा बजार<br>ले लो दो आने के चार।<br><br/poem>