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<poem>तेरी खुशी से अगर गम में भी खुशी न हुई<br>वोह वो ज़िंदगी तो मुहब्बत की ज़िंदगी न हुई!<br><br>
कोई बढ़े न बढ़े हम तो जान देते हैं<br>फिर ऐसी चश्म-ए-तवज्जोह कभी हुई न हुई!<br><br>
तमाम हर्फ़-ओ-हिकायत तमाम दीदा-ओ-दिल<br>इस एह्तेमाम पे भी शरह-ए-आशिकी न हुई<br><br>
सबा यह उन से हमारा पयाम कह देना<br>गए हो जब से यहां सुबह-ओ-शाम ही न हुई<br><br>
इधर से भी है सिवा कुछ उधर की मजबूरी<br>की कि हमने आह तो की उनसे आह भी न हुई<br><br>
ख़्याल-ए-यार सलामत तुझे खुदा रखे<br>तेरे बगैर कभी घर में रोशनी न हुई<br><br>
गए थे हम भी जिगर जलवा-गाह-ए-जानां में<br>वोह वो पूछते ही रहे हमसे बात ही न हुई</poem>
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