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जिन दिनो दिनों हम पढ़ते थे
एक लड़की हमारे कॉलेज में थी
खूबसूरत थी, इसलिए
:: अब तो इस अँगूठे को हटाओ
:: हम तुम में डूब जाए
:: तुम हम में हममें डूब जाओ!"
वह मुस्कुराकर बोली-
:: शौक़ से डूबिए भाईसाहब! मुझे तो जीना है
:: आँसू नहीं पीना है
:: लड़को की क्या कमी है?
:: एक ढूंढो , हज़ार मिलते है
:: तिज़ोरी में ताकत हो तो
:: डॉक्टर और इंजीनियर भी उधार मिलते हैं।
:: हमारी बहन भी हिन्दी में अमएम.ए. है
:: लेकिन ऐसी ससुराल मिली है
:: जहाँ नौकर तक अंग्रेज़ी बोलते हैं
:: और कुत्ते भी समझते है!"
और हमारे हमारी समझ में तब आया
जब हमारे पिताजी ने एक लड़की वाले को टटोला
और वह चौंककर बोला-
:: लड़का हिंदी में एम.ए. है।
:: तो भैया, घर में बिठाओ
:: और बाप -बेटा मिलकर
:: मीरा के भजन गाओ।"
एक रिश्ता और आया
:: "का कहा! एक लाख
:: इ-इ-इ हिन्दी के ढोल का कौन देगा जी?
:: ससुर, ख़ुआब देखते देखत हैं:: अपना काँटा के लिए गुलाब देखते देखत हैं: जानते जनते है?
:: मर जाइएगा
:: तबहुँ नहीं पाइएगा।"
उसके जाते ही पिताजी
हमसे बोले-
:: "क्तों क्यों बे, हिन्दी के ढोल
:: और कितने जूते खिलवाएगा बोल
:: अब तो यही सुनना बाकी बाक़ी रह गया है
:: सुन लिया न
:: वो ढोलकी का बाप क्या कह गया है?
:: लोग संस्कारों को सूली पर टाँग रहे हैं
:: और बेटे के बाप से दहेज माँग रहे हैं
:: अरे, ये हिन्दी का ढोल मेरी किस्मत क़िस्मत में न होता
:: तो जलवा दिखा देता
:: माँगनेवाले का घर बिकवाकर
:: साले को फुटपाथ पर बिठवा बिठा देता
:: पहले ही कहा था
:: हिन्दी-विन्दी के चक्कर में मत पड़
:: कोई ठिकाने का सब्जेक्ट लेकर एम.ए . कर
:: हमारे चपरासी तक का लड़का अफ़सर हो गया
:: सगाई में स्कूटर लाया है
:: शादी में कार लाएगा
:: और सुना है लड़की वाला लड़कीवाला पूरी बारात को:: फाइफ फ़ाइव स्टार होटल में ठहरायेगा:: यहाँ मौका मौक़ा भी आ गया तो
:: ठहराने वाला
:: ठहरा देगा झाड़ के नीचे
:: और सायकल के नाम पर
:: कुत्ते छुड़वादेगा छुड़वा देगा पीछे:: भागते भी नहीं बनेगा
:: और बेटा!
:: तुम्हारा हनीमून भी झाड़ पर मनेगा
:: हर बाप के अरमान होटल होते हैं:: कि बेटा पढ़ लिख कर लिखकर कुछ बने
:: तो उसे कैश करें
:: और बुढापे बुढ़ापे में ऐश करें:: हमने भी बेटी के हाथ पीले किए हैहैं
:: अंटी में जो था सब गँवा दिया
:: और जब हमारे कमाने का वक्त आया
हमने कहा-
:: " पिताजी!
:: दहेज़ लेना पाप है।"
वो बोले-
:: हम तेरे बाप हैं
:: कि तू हमारा बाप है
:: खबरदार , जो दहेज को पाप कहा!
:: और आज के बाद मुझे अपना बाप कहा!
:: अबे, हिन्दी के ढोल
:: जो बेटे का बाप
:: बिना दहेज दहेज़ खाए मरता है
:: उसे भगवान भी माफ़ नहीं करता है।
:: अब खड़े-खड़े मुँह क्या देख रहा है
:: जा हाथ में कटोरा थामकर
:: मीरा के भजन गा।"
और हमारे जी में आया
हाथ में तँबूरा लेकर
:: फिरता हूँ मैं मारा-मारा
:: सुबह-दोपहर-शाम
:: पढ़लिख कत कर हिन्दी में मैं हारा
:: दुनिया कहती है आवारा
:: जी करता है थाम उस्तरा
:: बन जाऊँ हज्जाम
:: हिन्दी आई न मेरे काम।"