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{{KKRachna
|रचनाकार=नागार्जुन
|संग्रह=खिचड़ी विप्लव देखा हमने / नागार्जुन
}}
[[Category:कवितायें]] <poem>
अभी-अभी हटी है
 
मुसीबत के काले बादलों की छाया
 
अभी-अभी आ गयी--
 
रिझाने, दमित इच्छाओं की रंगीन माया
 
लगता है कि अभी-अभी
 
ज़रा-सी गफ़लत में होगा चौपट किया-कराया
 
ठिकाने तलाश रही है चाटुकारों की भीड़
 
शंख फूँकने लगे नये-नये कुवलयापीड़
 
फिर से पहचान लो, वाद्यवृन्दों में पुरानी गमक और मीड़
 
दिखाई दे गये हैं गीध के शावकों को अपने नीड़
'''(1977 में रचित)</Poem>
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