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{{KKRachna
|रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र'
}}
[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
'''लेखन वर्ष: 2004
मेरी मोहब्बत को समझते हो तुम ग़लत, ग़लत नहीं है
तुमको चाहा है मैंने अगर इसमें कुछ ग़लत नहीं है
दिखा दो तुम कोई अपना-सा इस ज़माने में मुझको
मैं अगर फिर चाह लूँ उसको इसमें कुछ ग़लत नहीं है
आँखों को मेरी सुकून आया है तेरी हसीन सूरत देखकर
किसी चेहरे से सुकूनो-सबात पाना कुछ ग़लत नहीं है
मैं ने अगर देखा है तेरी आँखों में तो तूने भी देखा है
मोहब्बत की नज़र से किसी को देखना कुछ ग़लत नहीं है
डरते हो क्या तुम अपने-आप से या फिर जानकर किया सब
पहले प्यार में दिल का उलझ जाना कुछ ग़लत नहीं है
</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र'
}}
[[category: ग़ज़ल]]
<poem>
'''लेखन वर्ष: 2004
मेरी मोहब्बत को समझते हो तुम ग़लत, ग़लत नहीं है
तुमको चाहा है मैंने अगर इसमें कुछ ग़लत नहीं है
दिखा दो तुम कोई अपना-सा इस ज़माने में मुझको
मैं अगर फिर चाह लूँ उसको इसमें कुछ ग़लत नहीं है
आँखों को मेरी सुकून आया है तेरी हसीन सूरत देखकर
किसी चेहरे से सुकूनो-सबात पाना कुछ ग़लत नहीं है
मैं ने अगर देखा है तेरी आँखों में तो तूने भी देखा है
मोहब्बत की नज़र से किसी को देखना कुछ ग़लत नहीं है
डरते हो क्या तुम अपने-आप से या फिर जानकर किया सब
पहले प्यार में दिल का उलझ जाना कुछ ग़लत नहीं है
</poem>