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Kavita Kosh से
बेकैफ़ियों के कैफ़ से घबरा के पी गया<br>
तौबा को तोड़-तोड़ ताड़ के थर्रा के पी गया<br><br>
ज़ाहिद ये मेरी शोखी-ए-रिनदाना देखना<br>
सरमस्ती-ए-अज़ल मुझे जब याद आ गई<br>
दुनिया-ए-ऎतबार एतबार को ठुकरा के पी गया<br><br>
आज़ुर्दगी -ए -खातिर-ए-साक़ी को देख कर<br>
मुझको वो शर्म आई के शरमा के पी गया<br><br>
मैं इंतेहा-ए-शौक़ में घबरा के पी गया<br><br>