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दिल मुद्दई के हर्फ़-ए-मलामत से शाद है<br>
अए जान-ए-जाँ ये हर्फ़ तेरा नाम ही तो है<br><br>
दिल ना-उम्मीद तो नहीं, न-काम नाकाम ही तो है<br>
लम्बी है ग़म की शाम, मगर शाम ही तो है<br><br>
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