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एशिया जाग उठा
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यह एशिया की ज़मीं, तमद्दुन की कोख, तहज़ीब का वतन है
यहीं पे सूरज ने आँख खोली
हर-एक कोना भरा हुआ है
कहीं पे मेहराबे-फ़त्‌ह बाँधी
कहीं रुऊ़नत१५ की लाट उठायीउठाई
कहीं पे काँसे के घोडे़ ढाले
कहीं पे पत्थर के बुत बनायेबनाए
मगर यह ‘तहज़ीब और तमद्दुन’ की य़ादगारें कहीं नहीं हैं
बुलाओ अपने मुसव्विरों१६ और बुतगरों को
हमारी बेताब मुट्ठियों में
शफ़क़ का सिन्दूर
चाँद चांद तारों के फूल
सिरनों की सुर्ख़ अफ़साँ भरी हुई है।
१.दानशीलता २.औचित्य ३.प्रसंगानुकूल बात ४.कल्पनाशक्ति ५.प्रचण्ड ६.सर झुकाए हुए ७.कंगाली ८.रोज़गार की समस्याएँ ९.तेज़ लपकते हुए और भड़कते हुए १०.कड़वी, नागवार ११.मरुस्थल १२थोडा १३.कम्पन १४.दुनिया भर में सब से श्रेष्ठ १५.स्वच्छंदता, उद्दण्डता १६.चित्रकारों १७.हमेशा रहनेवाला, शाश्वत १८.वसन्त की सुबह रूपी नयी नई दुल्हन।
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