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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=तेजेन्द्र शर्मा]]}}[[Category:कविताएँ]][[Category:तेजेन्द्र शर्मा]]<poem>टेम्स का पानी, नहीं है स्वर्ग का द्वारयहां लगा है, एक विचित्र माया बाज़ार!
टेम्स का पानीकहां से आती है, नहीं कहां चली जाती है स्वर्ग का द्वार<br>यहां लगा ऐसे प्रश्न हमारे मन में नहीं जगा पाती है, एक विचित्र माया बाज़ार!<br><br>
::पानी टेम्स बस है मटियाया, गोरे हैं लोगों के तन<br>! टेम्स अपनी जगह बरकरार है !::माया के मक़डजाल में, नहीं दिखाई देता मनकहने को उसके आसपास कला और संस्कृति का संसार है !<br><br>
::बाज़ार संस्कृति में नदियां, नदियां ही रह जाती हैं<br>::बनती हैं व्यापार का माध्यम, मां नहीं बन पाती हैं !<br><br>
टेम्स दशकों, शताब्दियों तक करती है गंगा पर राज<br>फिर सिक़ुड़ जाती है, ढूंढती रह जाती है अपना ताज!<br><br>
::टेम्स दौलत है, प्रेम है गंगा; टेम्स ऐश्वर्य है भावना गंगा<br>::टेम्स जीवन का प्रमाद है, मोक्ष की कामना है गंगा<br><br>
जी लगाने के क्ई साधन हैं टेम्स नदी के आसपास<br>गंगा मैय्या में जी लगाता है, हमारा अपना विश्वास!<br><br/poem>