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कवि / मुकुटधर पांडेय

4 bytes removed, 08:52, 1 सितम्बर 2006
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बतलाओ, वह कौन है जिस जिसको कवि कहता सारा संसार ?
रख देता शब्दों को क्रम से, घटा-बढ़ा जो किसी प्रकार । प्रकार।
क्या कवि वही ? काव्य किसलय क्या उसका ही लहराता है,
जिसके यशः सुमन-सौरभ से निखिल विश्व भर जाता है । है।
नहीं, नहीं, मेरे विचार में कवि तो है उसका ही नाम
यम-दम-संयम के पालन युत होते हैं जिसके सब काम । काम।
रहती है कल्पना–कामिनी जिसके हृदय-कमल आसीन
संचारित करती सदैव जो भाँति-भाँति के भाव नवीन । नवीन।
भूत, भविष्यत्, वर्तमान पर होती है जिसकी सम दृष्टि
प्रतिभा जिसकी मर्त्यधाम में करती सदा सुधा की वृष्टि । वृष्टि।
जो करुणा श्रृंगार, हास्य वीरादि नवों रस का आधार
जिसको ईश्वरीय तत्वों का अनुभव युत है ज्ञान-अपार ।अपार।
जिसकी इच्छा से अरण्य में रम्य फूल खिल जाता है
नंदन वन से पारिजात की लता छीन जो लाता है ।है।
मरीचिका-मय मरुस्थली में जिसकी आज्ञा के अनुसार
कलकल नादपूर्ण बहती है अतिशय शीतल जल की धार । धार।
(सरस्वती, अक्टूबर 1919 में प्रकाशित)