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मलिन करते विद्युत-आलोक कर रहे ये मणि-दीप प्रकाश
हो रहा इसमें मुझको आज एक गुरुतर अभाव अभास आभास
नहीं नयनों में मेरे नींद रिक्त यह पडा स्वर्ण-पर्यक पर्यंक
विकलता लखकर मेरी आज व्योम में हँसता शुभ्र-मयंक
किया यद्यपि मैंने बहुवार बहुबार उपेक्षा-युत उसका अपमान
बहिन को क्षमा-दान कर बहिन न क्या कर सकती दुख से त्राण
विहग थे गाते सुंदर गीत किया जब उसने वहाँ प्रवेश
शारता शारदा करती थी हो शांत उषा का उपासनानत भाल
देख लक्ष्मी को सम्मुख खड़ी रह गयी स्तम्भित सी कुछ काल ।