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छोटे, छोटे झरने जो बहते सुख दाई सुखदाई
पथरीले पर्वत विशाल वृक्षों से सज्जित
बड़े-बड़े बागों को जो करते हैं लज्जित । लज्जित।
ऐसे सुंदर दृश्य देख सुख होता जैसा
और वस्तुओं से न कभी होता सुख वैसा । वैसा।
बड़े-बड़े मैदान दूब छाई श्यामलतर
भाँति-भाँति की लता बल्ली वल्लरी हैं जो सारी
ये सब मुझको सदा हृदय से लगती न्यारी । न्यारी।
पर्वत के नीचे अथवा सरिता के तट पर
होता हूँ मैं सुखी बड़ा स्वच्छंद विचरकर । विचरकर।
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