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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=तेजेन्द्र शर्मा]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:तेजेन्द्र शर्मा]]<poem>घर जिसने किसी ग़ैर का आबाद किया हैशिद्दत से आज दिल ने उसे याद किया है
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~जग सोच रहा था कि है वो मेरा तलबगारमैं जानता था उसने ही बरबाद किया है
घर जिसने किसी ग़ैर का आबाद किया तू ये ना सोच शीशा सदा सच है<br>बोलताशिद्दत से आज दिल ने उसे याद जो ख़ुश करे वो आईना ईजाद किया है<br><br>
जग सोच रहा था कि सीने में ज़ख्म है वो मेरा तलबगार<br>मगर टपका नहीं लहूमैं जानता था उसने ही बरबाद कैसे मगर ये तुमने ऐ सैय्याद किया है<br><br>
तू ये ना सोच शीशा सदा सच है बोलता<br>जो ख़ुश करे वो आईना ईजाद किया है<br><br> सीने में ज़ख्म है मगर टपका नहीं लहू<br>कैसे मगर ये तुमने ऐ सैय्याद किया है<br><br> तुम चाहने वालों की सियासत में रहे गुम<br>सच बोलने वालों को नहीं शाद किया है<br><br/poem>
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