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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=तेजेन्द्र शर्मा]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:तेजेन्द्र शर्मा]]<poem>कभी रंजो अलम के गीत मैं गाया नहीं करतासब्र करता हूं, अपने दिल को, तड़पाया नहीं करता
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~बुरे देखूं भले देखूं, बुराई भी भलाई भीकिसी चक्कर में पड़ क़रके मैं चकराया नहीं करता
कभी रंजो अलम के गीत मुझे मालूम है यह, चार दिन का मौज मेला हैन ख़ुद मैं गाया नहीं करता<br>सब्र तड़पा करता हूं, अपने दिल को, तड़पाया नहीं करता<br><br>
बुरे देखूं भले देखूं, बुराई मैं यह भी भलाई भी<br>जानता हूं, मुझको जन्नत मिल नहीं सकतीकिसी चक्कर में पड़ क़रके इसी से मैं चकराया कभी दोजख़ क़ो ठुकराया नहीं करता<br><br>
मुझे मालूम है यह, चार दिन का मौज मेला है<br>खुशामद चापलूसी की नहीं आदत रही अपनीन ख़ुद ग़लत बातें किसी को भी मैं तड़पा करता हूं, औ तड़पाया समझाया नहीं करता<br><br>
मैं यह मुकद्दर में लिखा जो है, मिलेगा देखना हमकोमुझे जो कुछ भी जानता हूंमिल जाए, मुझको जन्नत मिल नहीं सकती<br>इसी से मैं कभी दोजख़ क़ो ठुकराया नहीं करता<br><br>
खुशामद चापलूसी सुना है दूध की नहीं आदत रही अपनी<br>नदियां बहा करती हैं जन्नत मेंग़लत बातें किसी को भी मैं, समझाया मगर वो दूध इस दुनियां में काम आया नहीं करता<br><br>
मुकद्दर में लिखा जो है, मिलेगा देखना हमको<br>मुझे जो कुछ भी मिल जाए, मैं ठुकराया जन्नत की बूढ़ी हूरों से यारो हैं क्या लेनाबाजारे हुस्न इस दुनियां में सजवाया नहीं करता<br><br>
सुना है दूध नहीं अब नेमतों की नदियां बहा करती हैं जन्नत में<br>आरज़ू बाकी रही कोईमगर वो दूध इस दुनियां हूं गुरबत में काम आया पला मज़दूर, ललचाया नहीं करता<br><br>
मुझे घुटन महसूस करता हूं, मैं जन्नत की बूढ़ी हूरों के तस्सवुर से यारो हैं क्या लेना<br>बाजारे हुस्न इस दुनियां में सजवाया औ' दोजख़ क़े तस्सवुर से, मैं घबराया नहीं करता<br><br>
नहीं अब नेमतों की आरज़ू बाकी रही कोई<br>हूं गुरबत में पला मज़दूर, ललचाया नहीं करता<br><br> घुटन महसूस करता हूं, मैं जन्नत के तस्सवुर से<br>औ' दोजख़ क़े तस्सवुर से, मैं घबराया नहीं करता<br><br> उठा कर सर को चलता हूं, भरोसा है मुझे खुद पर<br>झुकाता सर नहीं अपना, मैं शरमाया नहीं करता<br><br/poem>
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